मुख्यमंत्री कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा, जिसका अंदाजा काफी समय पहले से लगाया जा रहा था। पिछले एक पखवाड़े से चल रहे राजनैतिक नाटक का अंत तब हुआ जब कमलनाथ ने फ्लोर टेस्ट होने से पहले ही राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया क्योंकि उनको पता था कि सरकार के पास अब पर्याप्त बहुमत नही हैं। वैसे तो कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिरने के कई कारण गिनाए जा सकते हैं, लेकिन सबसे मुख्य कारण रहा अपने विधायकों का बागी होना, नाराज होना। कमलनाथ अब जिंदगी भर उन 22 कांग्रेस के बागी विधायकों, मंत्रियों को नहीं भूल पाएंगे जिनकी वजह से वह सत्ता से बेदखल हुए। ये 22 विधायक वही हैं जिनको पिछले 15 महिने से कमलनाथ ने कभी अपना समझा ही नहीं। कहने को ये भले ही सत्तासीन कांग्रेस सरकार के विधायक, मंत्री थे मगर इनके साथ व्यवहार गैरों जैसा होता था। अब कमलनाथ आत्ममंथन कर रहे होंगे कि उन्होंने अपने साथियों के साथ बड़ी ना इंसाफी की थी ये उसी का परिणाम मिला है। आज भले ही चर्चा की जा रही है कि ये बागी विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक थे लेकिन सच्चाई इतनी नहीं है जितनी चर्चा है । सिर्फ 5-6 विधायकों को छोड़कर बाकी विधायक हकीकत मे कमलनाथ के बर्ताव से काफी नाराज थे। जिसका परिणाम यह रहा की उन्होंने अपनी विधायिकी तक को दांव पर लगा दिया। सिर्फ 15 महिनों में विधायक जैसे पद को दांव पर लगाना बड़ी बात है। ये बागी विधायक कोई बड़े राजघराने या पैसे वाले नहीं हैं, बड़ी मुश्किल से चुनाव जीतकर आए थे। लेकिन कमलनाथ के अहंकार और अकड़ के सामने इन विधायकों की अंतरआत्मा तक जवाब दे गई और कमलनाथ सरकार की खिलाफत पर उतरू हुए। यह कमलनाथ का अहंकार ही था कि वे एक बार भी बेंगलुरू में इन विधायकों से मिलने नहीं गए और दिग्विजय सिंह को पहुंचाया, लेकिन विधायकों ने दिग्विजय सिंह से भी मिलने से मना कर दिया। अपने राजनीतिक जीवन में कमलनाथ ने सपनों में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन उन्हें अपने पुत्र नकुलनाथ की चाहत और अपने विधायकों की नाराजगी की इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। कमलनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के लिए ऐड़ी चोटी तक की दम लगाई थी आर्थिक रूप से भी उन्होंने कांग्रेस पार्टी को सहयोग किया था, लेकिन कमलनाथ सत्ता का सुख ज्यादा दिन भोग नहीं पाए। राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह भी कमलनाथ की सरकार नहीं बचा पाए। दिग्विजय सिंह ने भले ही सरकार को बचाने में कोई कमी नही छोड़ी लेकिन दिग्विजय सिंह की ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ आपसी मनमुटाव कमलनाथ को ले डूबा। यदि दिग्विजय सिंह चाहते तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को संभाल सकते थे और अपने अहंकार से समझौता कर सकते थे पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। अब कमलनाथ की सरकार तो गिर गई पीछे छोड़ गई दिग्गजों के लिये आत्ममंथन। ये दिग्गज अपनी गलतियाँ बार बार गिनेंगे। मेरा मानना है कि सरकार गिरवाने में मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ-साथ उनकेे मंत्रियों का भी विशेष योगदान रहा है। खासकर जनसंपर्क मंत्री पी.सी. शर्मा उन्होंने तो सरकार की छवि खराब करने में बिलकुल भी कसर नहीं छोड़ी। पी.सी.शर्मा ने जनसंपर्क को खुद का विभाग मानकर कई गोलमाल किए। पत्रकारों को कई आर्थिक यातनाएं दीं। इन 15 महिनों में कमलनाथ सरकार के मंत्री पीसी शर्मा ने प्रदेश के छोटे एवं मंझोले पत्रकारों के साथ जो भेदभाव और पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया था उसकी कीमत सत्ता की कुर्सी गंवाकर चुकाई है।
कमलनाथ का अहंकार ओर अपनों का मोह 15साल मे सत्ता मे आई कांग्रेस सरकार को 15 महिनों मे ले डूबा